मामला तब शुरू हुआ जब बच्ची ने एक अनजान व्यक्ति से

रीवा की 10 वर्षीय बच्ची ने रची अपने अपहरण की झूठी कहानी: सीसीटीवी ने किया पर्दाफाश

रीवा (मध्यप्रदेश) : रीवा शहर के चोरहटा इलाके से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने सिर्फ पुलिस को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज और परिवारिक ताने-बाने को सोचने पर मजबूर कर दिया है। एक 10 वर्षीय बच्ची ने स्कूल का होमवर्क पूरा न होने पर डांट के डर से अपने अपहरण की झूठी कहानी गढ़ दी। हालांकि पुलिस की तत्परता और जांच के बाद इस फर्जी कहानी की परतें धीरे-धीरे खुलती गईं।

झूठी कॉल और अपहरण की कहानी

मामला तब शुरू हुआ जब बच्ची ने एक अनजान व्यक्ति से फोन लेकर अपनी मां को कॉल किया और कहा कि दो बाइक सवार युवक उसे जबरन अगवा कर ले गए हैं। यह सुनते ही मां की हालत खराब हो गई। वो घबराई हुई तुरंत फोर्ट रोड पहुंची, जहां बच्ची सुरक्षित मिली। इसके बाद उसे लेकर मां चोरहटा थाने पहुंची।

पुलिस ने की बारीकी से जांच

चोरहटा पुलिस ने बच्ची द्वारा बताए गए पूरे रूट की छानबीन शुरू की और इलाके के 20 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली। पुलिस को हैरानी तब हुई जब वीडियो में बच्ची खुद साइकिल चलाते हुए दिखाई दी। इसके बाद जब बच्ची से सख्ती से पूछताछ की गई, तो उसने स्वीकार किया कि अपहरण की बात झूठी थी। उसका स्कूल होमवर्क अधूरा था और उसे डर था कि टीचर डांटेंगे, इसलिए उसने यह कहानी बनाई।

बड़ा सवाल: साइकिल गई कहां?

पूरे घटनाक्रम में एक और बड़ा सवाल यह है कि बच्ची की साइकिल कहां गई? पुलिस को न तो घटनास्थल पर साइकिल मिली और न ही बच्ची ने इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी दी। इससे संदेह गहराता जा रहा है कि कहीं बच्ची ने जानबूझकर साइकिल छिपाई तो नहीं, या फिर इस कहानी के पीछे और भी कोई एंगल छिपा हुआ है।

परिवार और समाज के लिए चेतावनी

इस घटना ने सिर्फ पुलिस को नहीं, बल्कि समाज और खासकर परिवारों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल यह नहीं कि बच्ची ने झूठ क्यों बोला, बल्कि यह है कि वह ऐसा करने के लिए मजबूर क्यों हुई? क्या हम बच्चों पर पढ़ाई और अनुशासन का इतना बोझ डाल रहे हैं कि वे भय और तनाव में जीने लगे हैं?

क्या सोशल मीडिया और समाज में फैली डरावनी कहानियों का असर मासूम दिमागों तक पहुंच चुका है? 10 साल की बच्ची का झूठा अपहरण रच देना हमारे सामाजिक माहौल के लिए खतरे की घंटी है।

हर घर के लिए एक सबक

हर घर को इस घटना से सीख लेने की जरूरत है। बच्चों को सिर्फ भौतिक सुविधाएं नहीं चाहिए, बल्कि एक ऐसा वातावरण चाहिए जहां वे खुद को सुरक्षित, समझे जाने योग्य और स्वीकार किए जाने लायक महसूस कर सकें।